प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजली कर्मचारियों की प्रदेशव्यापी हड़ताल को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार से पूछा कि हड़ताल करने वाले बिजली कर्मचारियों की गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई। कोर्ट ने कर्मचारी नेताओं से भी पूछा कि उनकी हड़ताल से राज्य को कितना आर्थिक नुकसान हुआ है।
सोमवार को इस मामले में कोर्ट ने तीन चरणों में सुनवाई की। कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ के समक्ष बिजली कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे लेकिन कर्मचारी नेताओं की ओर से अंडरटेकिंग नहीं दी गई कि भविष्य में वे हड़ताल नहीं करेंगे।
कोर्ट ने सबसे पहले उनसे पूछा कि उनकी इस हड़ताल से राज्य को कितना आर्थिक नुकसान हुआ है। इस पर कर्मचारियों के अधिवक्ता ने कहा कि वह यह नहीं बता सकते हैं कि नुकसान कितना हुआ है। इस पर कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए कहा कि वह 11 बजे उपस्थित होकर बताएं कि हड़ताल से कुल कितना नुकसान हुआ है। दोबारा 11 बजे सुनवाई प्रारंभ हुई, तब भी कर्मचारी नेताओं के अधिवक्ता नुकसान का ब्योरा नहीं दे सके।
इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल से पूछा कि हड़ताल करने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने कहा कि जब 600 एफआईआर दर्ज की गई और वारंट जारी किए गए तो उनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई।
कोर्ट का कहना था कि मुद्दा यह नहीं है कि हड़ताल वापस ले ली गई है यह काफी गंभीर मामला है। किसी को भी लोगों के जीवन से खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने एक बार फिर सुनवाई टालते हुए साढ़े 12 बजे पुनः कर्मचारी नेताओं को नुकसान के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया। साढ़े 12 बजे जब फिर सुनवाई शुरू हुई, तब भी कर्मचारी नेता यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि कुल कितना नुकसान हुआ है। हालांकि सरकार की ओर से बताया गया कि करीब 20 करोड़ का नुकसान हुआ है। कर्मचारी नेताओं की ओर से कहा गया कि सरकार बार-बार वादा करने के बाद भी मांगें नहीं मानती है जिससे उन्हें मजबूरी में हड़ताल करनी पड़ी।
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